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एक फौजी का दर्द उरी में हमले, पुंछ में हमले फिर भी तुम खामोश रहे, ए. सी. वाली कारों में, ताक़त तुम मदहोश मिले। जब बात वतन की नाक पर आयी "बीमारी " से बेहोश मिले; उरी में हमले पुंछ में हमले फिर भी तुम खामोश रहे। ए. सी. वाली कारों में ताकत में तुम मदहोश मिले। जब सरहद पर पूनम की चांदनी में एक फौजी गुज़र गया, रब राखै कौन अनाथ हुआ और किसका बेटा बिछड़ गया. फिर हुआ सबेरा आँखे रंग के टीवी के आगे बिफ़र गया, रे ! तू क्या जाने किसका शौहर किस राखी से मिटर गया. जब कलम हुआ था वो फौजी.....उसे तुम सबने ही मार था; दुश्मन से नहीं हारा था पर वो तुम सब से ही हारा था. तुम कहते जन से-"तुम अपनी धरती की पैरोकार करो। "..... खा के जनता का पैसा पर तुम सपने अपने साकार करो. तुम आग लगाते गाँवो में, माटी को तुम बदनाम करो..... फौजी को बोलते तुम-"उतना जितना मैं बोलूं काम करो। ... " …