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अपने देश में लोग बड़े ही निराले हैं, वेबसाईट बनवानी है तो उसको भी समझते हैं कि साग़-सब्ज़ी खरीद रहे हों….. क्या भाव दिया भैय्या? कितने में बन जाएगी वगैरा वगैरा! ये ज़्यादातर ऐसे लोग होते हैं जिनको इन मामलों में चार आने की समझ नहीं होती। एक अलग तरीके का उदाहरण देखें तो मान लीजिए मारूति 800 या टाटा नैनो जैसी बजट वाली गाड़ी चलाने वाला रॉल्स रॉयस या बेन्टली के शोरूम में चला जाता है तो वो वहाँ क्या पूछेगा? कितना माईलेज देती है भैय्या?  इसी तर्ज़ पर एक विज्ञापन भी बना था, शायद मारूति का ही।

 

हुआ यूँ कि एक समूह में किसी ने वेबसाईट डिज़ाईनर का रेफ़रेन्स माँगा, एक मित्र ने किसी व्यक्ति का नाम सुझा दिया। खरीददार ने सप्लायर से पूछा कि भई कोई सैंपल दिखाओ तो उसने दिखा दिया। अब खरीददार ने पूछा क्या भाव तो सप्लायर ने बोला कि आपको क्या चाहिए यह समझे बिना भाव नहीं बता सकते। खरीददार अड़ गया, बोला कि वो सब छोड़ो आप ऐसे ही आईडिया दे दो बस। तो सप्लायर ने अंदाज़ से एक रकम बताते हुए कह दिया कि लगभग इतना लगेगा और ज़रुरत के हिसाब से काम ज़्यादा हो सकता है अब खरीददार ने भाव लगाना शुरू किया कि आप रेट बहुत ज़्यादा लगा रहे हो फला बन्दा तो इतने कम में दे रहा है अब सप्लायर को लगा कि इस तकनीकी काम और उसकी ज़रुरत  के बारे में बहस करने से अच्छा मना कर दो यह बंदा केवल समय ही बर्बाद करेगा (ठीक भी है ऐसे लोगों के साथ काम करना बहुत आफ़त वाला काम होता है ऐसा मैं अपने निजि अनुभव से कह सकता हूँ) तो उसने हाथ जोड़ दिए कि माफ़ करो जनाब हम ऐसे काम नहीं करते। अब तो खरीददार को लगा कि उसकी तो बेइज़्ज़ती हो गई तो उसने सप्लायर को सरेआम अहंकारी, नामाकूल, कमीना आदि शानदार अलंकारों से नवाज़ दिया।

 

आगे क्या हुआ? एक मोहतरमा ने अपनी सेवाएँ ऑफ़र करी, खरीददार ने फिर वही पूछा। मोहतरमा ने बिना किसी बहस के कहा कि आप अपनी कंपनी का प्रोफाईल बताइये तो कुछ सैंपल भेज दिए जाएँ। खरीददार इसमें खुश हुवा । हालांकि मोहतरमा ने भी यही दोहराया कि बिना खरीददार की आवश्यकता समझे भाव नहीं बताया जा सकता लेकिन इसमें खरीददार को कोई आपत्ति नहीं थी  । पहले वाले सप्लायर ने जब यह कहा था तो वह अहंकारी और नामाकूल था!

 

उनके भाव के हिसाब से मोहतरमा ने काम कर दिया अब हाल ये है कि रोज उनकी शिकायतों का दफ्तर उसी दोस्त के सामने खुला होता है जिससे उन्होंने पहले सप्लायर का पता पूछा था !

एक अप्रिय सत्य -९०% भारतीय मूर्ख होते हैं—- मार्कण्डेय  काटजू

-Priyanka Shukla

 B.Tech CS, 2nd Year