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उड़ने की आज़ादी 
धीरू उर्फ़ धीरेन्द्र, बचपन से खामोश तबियत बालक,औसत दर्जे का विद्यार्थी, माँ पिताजी की डाँट खाना जो अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता था ! बस हर समय अपने कमरे में बेकार की चीजों में उलझा रहता ! माँ बड़बड़ाया करती,पिताजी अपने एकलौते बेटे को समझाया करते, पर सब बेकार !

वर्ष भर में बस एक दिन उसकी चांदी रहती वो था विज्ञानं मेले का दिन जिस दिन उसका मोडल सबकी प्रशंसा प्राप्त करता,और प्रथम पुरस्कार पर केवल उसी का हक़ होता ! बेमन से इंजीनियरिंग पास करके भी उसका ये पागलपन न छूटा ! पर इन ही छोटे छोटे प्रयोगो की बदौलत उसे एक दिन विज्ञानं का सबसे बड़ा प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त हुआ ! आज माँ पिताजी सर फख्र से उठा कर चलते और बेटे की प्रंशंसा करते न अघाते !

असल में बात कुछ भी नही थी बात सिर्फ इतनी सी है कि हम अपने बच्चों को अपनी ख्वाहिशों के बोझ तले इतना दबा देते हैं कि उनकी अपनी असल प्रतिभा कही खो सी जाती है वो अपने माँ बाप की इच्छाओं और अपनी तमन्नाओं के भंवर में झूलने लगते हे और कुछ समझ नहीं पाते ! कभी कभी तो अपने जीवन का अंत करना उन्हें सरल लगता हे बजाय परिस्थितियों से मुकाबला करने के,विरले ही होते हे जो ये जंग जीत जाते हैं ! यहाँ जरूरत है हर माँ बाप को अपने बच्चों के अंतर्मन को समझ कर उनसे एक दोस्ताना रवैया अपनाने की,ताकि वो उनसे कुछ भी शेयर करने से न घबराएं !

हमें देना होगा उन्हें उनका वो आस्मां जिसमे वो विचर पाए खुल के !

सीख ही जायेंगे उड़ना इक दिन आकाश में !

एक मौका तो दो उस पंछी को पंख फ़ैलाने का !!

-KAMAL HUSSAIN