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अनजान
क्या सीखूँ तुझसे ज़िन्दगी, मैं खुद से ही अनजान हूँ |
तेरे लिए जियूँ, तो अपने मन की रानी हूँ ।
खुद के लिए जियूँ, तो मै अभिमानी हूँ ॥
अपनों के लिए जियूँ, तो दुनिया से अनजान हूँ ,
दुनियाँ के लिए जियूँ, तो अपनो से परेशान क्यों ?
कुछ कमी है मुझमे शायद या मानसिकता से बिमार हूँ?
क्या सीखूं तुझसे ज़िन्दगी,
मैं खुद से ही अनजान हूँ
उलझन मेरी बढ़ जाती हैं ।
कई प्रश्नों से घिर जाती हूँ, जब-जब थोड़ी बारीकी से, मैं तुझे जानने आती हूँ।
डर लगता मुझे इन सबसे
मैं हल्की सी हैरान हूँ
क्या सीखूं तुझसे ज़िन्दगी,
मैं खुद से ही अनजान हूँ