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किस्मत

जिद थी खुद से उसे पाने की

आंगन में खुशियां लाने की

हाथों की लकीरो में उसे सजाने की

ख्वाबों को हक़ीक़त बनाने की

 

न थी हाथों की लकीरों में

न थी किस्मत के सितारों में

न थी जीवन की राहो में

न थी साहिल के किनारों में

 

लोगों से सुनता आया हूँ

सब किस्मत का लेखा है

कौन किसे जीता या हारा

ये किसने कब देखा है

 

ये दुनिया का रेला है

जो आया हैं वो जायेगा

उतना ही जी पायेगा

जितनी जिसकी रेखा हैं

-कमल हुसैन

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