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बचपन
मैने देखा आज बचपन को रोते हुए
नन्हे ख्वाबों को आंसू पिरोते हुए
माँ के आँचल में रो के छिप जाते है जब
उस उम्र में बर्तन को धोते हुए
स्कूल की किताबों को बस्ते में बंद करते हुए
सूखी ब्रेड को चाय में भिगोते हुए
उनकी आँखों में हसरत को पलते हुए
बहन भाई संग लड़ते झगडते हुए
एक दूजे को रूठते मनाते हुए
हंस हंस के ममता का हक़ लेते हुए
मैने देखा आज बचपन को रोते हुए
जरुरत हे उस अनाथ को बस एक सहारे की
उसकी जीवन नैया को बस एक किनारे की
क्या वो मैं नहीं हो सकता एक सवाल उभरा
क्या वो तुम नहीं हो सकते एक सवाल उभरा
आओ मिल कर एक छोटा सा आशियाना बनाये
इस नन्हे बचपन के ख्वाबों को उसमे सजाये
ताकि नन्ही आँखों  का कोई ख्वाब न टूटे
किसी बचपन से ममता का आँचल न छूटे
-कमल हुसैन
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