प्रकृति की ओर
शाम का समय था, मेरे पति घर आने वाले थे, मेरा पंाच साल का बेटा शिवम घर में खेल रहा था , मैं रात का खाना बना रही थी!
अचानक मुंझे एहसास हुआ कि काफी देर से शिवम की आवाज़ सुनायी नही दी ! मैने गैस की आॅच कम की, सब्जी को प्लेट से ढका और पूरा घर देखने के बाद जब पीछे के आंगन मे गयी तो देखा कि वो कोने मे मिट्टी से लथपथ कुछ हरी पत्तियों को मिट्टी के ढेर मे जमाने की कोशिश कर रहा है! मुझे गुस्सा अआ गया, पूरा आॅगन मुझे गन्दा दिखाई देने लगा ।
मै बहुत ज्यादा सफाई पसन्द हूॅ। मुझे गन्दगी बरदाश्त नही हैं , मिट्टी तो बिल्कुल भी नही , जब ये घर खरीदा गया था तो आॅगन में एक बहुत बड़ा बरगद का पेड़ था। उसे कटवाने के लिये मुझे शिवम के पापा से जंग लड़नी पड़ी थी। हांलाकि कटवाने का एक फायदा और था कि ड्रांइग रूम काफी बड़ा निकल आया था!
अचानक शिवम की अवाज़ मुझे ख्यालों से खींच लायी , ‘‘मम्मा स्कूल से लाया पतियाॅ भी और मिट्टी भी, स्कूल मे कुछ लोग आये थें, उन्होने बताया कि अगर जिन्दा रहना है तो पेड़ लगानें होंगे । मम्मा मैने लगा दिया, अब ये बड़ा हो जायेगा, पेड़ बन जायेगा और मैं ज़िन्दा रहूॅगा ’’ ये कहते हुए वो दौड़ के मेरी टंागो से लिपट गया।
बेटे की साधरण भाषा मे कहीं गयी असाधारण बात ने मुझे गहरी सोच मे डाल दिया। जो बात मुझे कोई न समझा पाया वो मेरे नन्हे से बेटे ने समझा दी । गन्दगी न हो उसकी खातिर मैने बरसों मे बढे़ हुए पेड़ को कटवा दिया! घर मे गन्दगी न हो तो मैने एक पौधा भी घर मे नही लगाने दिया!
उफ। मै कितनी गलत थी! लगा आज बेटे की अदालत में मै कटघरें मे हॅू ! मेरी आॅखे नम और दिल मे एक दृढ़ निश्चय था।
कमल हुसैन